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मानसरोवर--मुंशी प्रेमचंद जी


स्‍वामिनी मुंशी प्रेम चंद

7
जोखू और प्यारी में ठनी हुई थी।
प्यारी ने कहा- मैं कहती हूँ, धान रोपने की कोई जरूरत नहीं। झड़ी लग जाय, तो खेत डूब जाय। बर्खा बन्द हो जाय, तो खेत सूख जाय। जुआर, बाजरा, सन, अरहर सब तो हैं, धान न सही।
जोखू ने अपने विशाल कंधे पर फावड़ा रखते हुए कहा- जब सबका होगा, तो मेरा भी होगा। सबका डूब जायगा, तो मेरा भी डूब जायगा। मैं क्यों किसी से पीछे रहूँ? बाबा के जमाने में पाँच बीघा से कम नहीं रोपा जाता था, बिरजू भैया ने उसमें एक-दो बीघे और बढ़ा दिये। मथुरा ने भी थोड़ा-बहुत हर साल रोपा, तो मैं क्या सबसे गया-बीता हूँ? मैं पाँच बीघे से कम न लागाऊँगा।
'तब घर में दो जवान काम करने वाले थे।'
'मै अकेला उन दोनों के बराबर खाता हूँ। दोनों के बराबर काम क्यों न करूँगा?
'चल, झूठा कहीं का। कहते थे, दो सेर खाता हूँ, चार सेर खाता हूँ। आध सेर में रह गये।'
'एक दिन तौलो तब मालूम हो।'
'तौला है। बड़े खानेवाले! मै कहे देती हूँ धान न रोपो मजूर मिलेंगे नहीं, अकेले हलकान होना पड़ेगा।
'तुम्हारी बला से, मैं ही हलकान हूँगा न? यह देह किस दिन काम आयेगी।'
प्यारी ने उसके कंधे पर से फावड़ा ले लिया और बोली- तुम पहर रात से पहर रात तक ताल में रहोगे, अकेले मेरा जी ऊबेगा।
जोखू को ऊबने का अनुभव न था। कोई काम न हो, तो आदमी पड़ कर सो रहे। जी क्यों ऊबे? बोला- जी ऊबे तो सो रहना। मैं घर रहूँगा तब तो और जी ऊबेगा। मैं खाली बैठता हूँ तो बार- बार खाने की सूझती है। बातों में देर हो रही है और बादल घिरे आते हैं।
प्यारी ने कहा- अच्छा, कल से जाना, आज बैठो।
जोखू ने मानों बंधन में पड़कर कहा- अच्छा, बैठ गया, कहो क्या कहती हो?
प्यारी ने विनोद करते हुए पूछा- कहना क्या हे, मैं तुमसे पूछती हूँ, अपनी सगाई क्यों नही कर लेते? अकेले मरती हूँ। तब एक से दो हो जाऊँगी।
जोखू शरमाता हुआ बोला- तुमने फिर वही बेबात की बात छेड़ दी, मालकिन! किससे सगाई कर लूँ यहाँ? ऐसी मेहरिया लेकर क्या करूँगा, जो गहनों के लिए मेरी जान खाती रहे।
प्यारी- यह तो तुमने बड़ी कड़ी शर्त लगायी। ऐसी औरत कहाँ मिलेगी, जो गहने भी न चाहे?
जोखू- यह मैं थोड़े ही कहता हूँ कि वह गहने न चाहे;हाँ, मेरी जान न खाय। तुमने तो कभी गहनों के लिए हठ न किया, बल्कि अपने सारे गहने दूसरों के ऊपर लगा दिये।
प्यारी के कपोलों पर हल्का-सा रंग आ गया। बोली- अच्छा, और क्या चाहते हो?
जोखू- मैं कहने लगूँगा, तो बिगड़ जाओगी।
प्यारी की आँखों में लज्जा की एक रेखा नजर आयी, बोली- बिगड़ने की बात कहोगे, तो जरूर बिगडूँगी।
जोखू- तो मैं न कहूँगा।
प्यारी ने उसे पीछे की ओर ठेलते हुए कहा- कहोगे कैसे नहीं, मैं कहला के छोड़ूँगी।
जोखू- मैं चाहता हूँ कि वह तुम्हारी तरह हो, ऐसी गंभीर हो, ऐसी ही बातचीत में चतुर हो, ऐसा ही अच्छा पकाती हो, ऐसी ही किफायती हो, ऐसी ही हँसमुख हो। बस, ऐसी औरत मिलेगी, तो करूँगा, नहीं इसी तरह पड़ा रहूँगा।
प्यारी का मुख लज्जा से आरक्त हो गया। उसने पीछे हटकर कहा- तुम बड़े नटखट हो! हँसी- हँसी में सब कुछ कह गये।

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